Wednesday, August 21, 2019

तुमने संमरमर का घर बनाया  मेंरा
फिर भी मैं दरदर भटकता हूँ
रहना चाहता हूँ सिर्फ साफ़ दिलों में
तुम्हारे  एलान मे नहीं अटकता हूँ 
सड़क पे बैठा हूँ ,सिग्नल पे खड़ा रहता हूँ 
कभी ध्यान देना चलते चलते रकते रुकते
शायद दिल में नहीं तो  बहार भी दिखता नहीं
बगल से गुज़र जाते हो, गलती तुम्हारी  नहीं
जिसे जानते नहीं उसे पहचानोगे  कैसे 

No comments:

Post a Comment