मेघना
गुलज़ार को
आपके पापाजी जो हैं ना?
वो उस मिटटी के घोड़े की तरह ही तो है
जो आपने घर से भाग गया था
वो अब हमारे घर में रहता है
सोता सुकून से,और हम सब का दिल जगाता है
जो फटे हुए मन को सी देता है
आपके पापी जो हैं ना?
शब्दों का कारोबार नहीं रौशनी का सौदागर है
सूफी बच्चे जैसा कबीर-ियत चुनता बुनता है वो
महफ़िल की शान नहीं बन सकती रौशनी कभी
लेकिन जिस पर पड़ती है उसे संवार देती है
वो उस श्राप की तरह है जो छोड़ता नहीं है
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